फिर से हर सहर का वो सूनापन
फिर से उसे भुलाने की वो नाकाम कोशिशें
पर कुछ तो नया है,
हाँ .. कुछ तो नया है..
अब मैं अकेली नहीं,
तू है,
और अब तेरे ही सहारे मेरी हिम्मत
हर पल अपने को एक नयी उम्मीद से बाँध दिया करती है,
यूँ ही ज़िन्दगी से,
कभी ऐसे, तो कभी वैसे, नए सपने निचोड़ लिया करती है...
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