Sunday, October 30, 2011

kuch panktiyaan

अगरबत्ती के धुंए की तरह, कुछ यादें...
मेरे नज़दीक यूँ आयीं, और यूँ 
हवा में समा सी गयीं, के जैसे...
बस एक खुशबु सी है अभी भी यहाँ, जो एहसास दिला रही है, 
उनसे  मुखातिब होने का..
~~~
खुद से बडबडाते हुए, सालों से, 
एक चुप्पी सी सध गयी है सीने में,
अँधेरे सी तीखी, रौशनी सी तेज़, 
ना चुप रहने देती है, और ना लफ्ज़ आ पातें है कम्बखत जुबां पे,
उफ़ ये हाल-ए- तन्हाई...
~~~
चायपत्ती, इलाईची, और चीनी की मंद मंद खुशबु, 
और गुनगुनाती सर्दियों की ये धुंध भरी सुबह..
चलो कहीं तो कोई किसी अपने के लिए चाय बना रहा, लगता है..



1 comment:

Divesh said...

Lovely ... Mujhe in teenon ko padh ke Gulzar saab ki yaad aayi..

1st one - Ek baar waqt se, lamha gira kahin.. wahaan daastaan mili, lamha kahin nahi

2nd one - Hai naam hothon pe ab bhi lekin, aawaaz mein pad gayi daraaren

3rd one - this was a wonderful triveni.. last mein agar "lagta hai" na lagaaya hota to thodi aur achchhi lagti.. phir thoda zyaada vishwaas jhalakta :)

PS: 2nd last line mein bhari ka बहरीho gaya hai :D