गोपाल दस नीरज ..
धर्म है
जिन मुश्किलों में मुस्कुराना हो मना,उन मुश्किलों में मुस्कुराना धर्म है
जिस वक़्त गैर मुमकिन सा लगे,
उस वक़्त जीना फ़र्ज़ है इंसान का..
लाजिम लहर के साथ है तब खेलना,
जब हो समुन्दर पे नशा तूफ़ान का..
जिस वायु का दीपक बुझाना ध्येय हो,
उस वायु में दीपक जलाना धर्म है..
हो नहीं मंजिल कहीं जिस राह की,
उस राह चलना चाहिए इंसान को,
जिस दर्द से साड़ी उमर रोते कटे
वह दर्द पाना है ज़रूरी प्यार को..
जिस चाह का हस्ती मिटाना नाम है,
उस चाह पर हस्ती मिटाना धर्म है..
आदत पड़ी हो भूल जाने की जिसे,
हरदम उसी का नाम हो हर सांस पर
उस की खबर में ही सफ़र सारा कटे
जो हर नज़र से हर कदम हो बेखबर,
जिस आँख का आँखें चुराना काम हो,
उस आँख से आँखें मिलाना धर्म है..
जब हाथ से टूटे ना अपनी हथकड़ी
तब मांग लो ताकत स्वयं ज़ंजीर से,
जिस दम ना थमती हो नयन सावन झड़ी,
उस दम हंसी ले लो किसी तस्वीर से,
जब गीत गाना गुनगुनाना जुर्म हो,
तब गीत गाना गुनगुनाना धर्म है..
2 comments:
oh ye poem to meko mili thi finishing clss me..
that was good..
Thank you.. :)
Love you very very much :) :)
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