Monday, October 12, 2009

ये हूँ मैं..

रोज़ फिरू मैं बंद सड़क पर,
फिर भी हूँ मैं खुली खुली.

चलते चलते कहीं भी जाती,
चाहे हो कोई गली- वली.

देख राह में वो रफ्तारें,
मैं ना पग से डिगी कभी.

जानू ना अपनी मंजिल मैं,
फिर भी हूँ कुछ सधी हुई.