Tuesday, January 4, 2011

ढूंढते हुए, यूँ ही

कुछ शोर यहाँ, कुछ शोर वहां, 
कुछ भीनी भीनी खुशबूएं भी हैं, 
थोडा सन्नाटा, और थोड़ी अटखेलियाँ भी..
हर तरफ यूँ ही बिखरी पड़ी रहती हैं. 

यूँ ही एक पल, 
हमने चुना शोर को, 
तो यहाँ वहां, सब चला गया 
ना पता चला यहाँ का, और वहां भी लापता हुआ, 
शोर शोर शोर, शोर शोर, एक ही हुआ, एक ही तो था ..

फिर नज़र मिली .. छुपे हुए, 
छुपे हुए, सन्नाटे से, 
थोडा उदास हुआ सा लगता था.. 
कहता था हमें यूँ ही..
"की आजकल हम से खफा हो क्या भला? क्यों मिलती नहीं, बतयाती नहीं..?"
मैं हंस पड़ी.. बस यूँ ही.. मैं हंस पड़ी ..
बस सन्नाटा जाने ही को था फिर से छुप के..
पर थमी में एक पलको फिर अभी.. और कही.. 
"क्यों अटखेलियाँ तुम हंसे किये जाते हो? तुम हो गवाह..
तुम में ही बनी हूँ, और तुम ही में जिए जाती हूँ..
तुम में ही कुछ अक्ष हूँ में लिख रही, तुम में ही कुछ गीत कभी गुनगुना लेती हूँ..
और या मौला, क्या ये तुम्ही हो ?
जो ये अलफ़ाज़ मुझे सुनाए जाते हो, और मैं हूँ के, कही जाती हूँ.. बस तुमसे ही कही जाती हूँ..

कुछ शोर यहाँ, कुछ शोर वहां, 
कुछ भीनी भीनी खुशबूएं भी हैं, 
थोडा सन्नाटा, और थोड़ी अटखेलियाँ भी..
हर तरफ यूँ ही बिखरी पड़ी रहती हैं. 

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